गंगाजल (गंगा नदी का जल) को भारतीय संस्कृति में पवित्र और अमरत्व से जुड़ा माना जाता है। सदियों से कहा जाता रहा है कि “गंगाजल कभी खराब नहीं होता।” यह कोई केवल धार्मिक मान्यता नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक कारण भी हैं। इस लेख में हम गंगाजल के कभी न सड़ने या खराब न होने के पीछे छिपे वैज्ञानिक तथ्यों का गहराई से विश्लेषण करेंगे, बिना किसी मिथ या भावनात्मक पक्षपात के।
1. गंगाजल में प्राकृतिक बैक्टीरियोफेज की उपस्थिति
गंगाजल में विशेष प्रकार के वायरस पाए गए हैं जिन्हें बैक्टीरियोफेज (Bacteriophages) कहते हैं। ये वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को नष्ट कर देते हैं। 1896 में ब्रिटिश वैज्ञानिक अर्नेस्ट हंकिन ने गंगाजल में बैक्टीरियोफेज की उपस्थिति को प्रमाणित किया था। उन्होंने यह पाया कि गंगाजल में Escherichia coli जैसे रोगजनक बैक्टीरिया भी लंबे समय तक जीवित नहीं रह पाते। यही कारण है कि गंगाजल self-purifying nature वाला जल बन जाता है।
बैक्टीरियोफेज गंगाजल में कहाँ से आते हैं?
● कहां से आते हैं?
बैक्टीरियोफेज वो वायरस होते हैं जो सिर्फ बैक्टीरिया को मारते हैं। ये प्राकृतिक रूप से मिट्टी, पानी और मानव/पशु मल में पाए जाते हैं।
जब बारिश होती है या ग्लेशियर पिघलता है, तो आसपास की मिट्टी और वनस्पति से ये बैक्टीरियोफेज नदी में घुल जाते हैं।
● कब से होते हैं?
गंगा के उद्गम (गंगोत्री ग्लेशियर) से लेकर नीचे के इलाकों में जहां गंगा जंगलों, पहाड़ों और खेतों से होकर गुजरती है — वहां की मिट्टी और जैविक चीज़ें (organic matter) इन वायरस को गंगाजल में प्राकृतिक रूप से मिला देती हैं। ये हजारों सालों से प्रकृति के साथ बहकर आते हैं।
● कब से होते हैं?
गंगा के उद्गम (गंगोत्री ग्लेशियर) से लेकर नीचे के इलाकों में जहां गंगा जंगलों, पहाड़ों और खेतों से होकर गुजरती है — वहां की मिट्टी और जैविक चीज़ें (organic matter) इन वायरस को गंगाजल में प्राकृतिक रूप से मिला देती हैं। ये हजारों सालों से प्रकृति के साथ बहकर आते हैं।
2. उच्च स्तर का ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का अनुपात
गंगा के उद्गम स्थान (गंगोत्री ग्लेशियर) से निकलते समय इस जल में ऑक्सीजन का घनत्व अन्य नदियों की तुलना में अधिक होता है।
इस उच्च ऑक्सीजन कंटेंट के कारण जल में aerobic conditions बनी रहती हैं, जिससे सड़ांध उत्पन्न करने वाले anaerobic bacteria पनप नहीं पाते।
ऑक्सीजन की अधिकता गंगाजल में कैसे आती है?
● कहां से आती है?
गंगा एक बहुत तेज़ प्रवाह वाली नदी है, खासकर अपने शुरुआती पहाड़ी मार्ग में। जब पानी तेज़ी से बहता है और पत्थरों से टकराता है, तो उसमें हवा के बुलबुले मिलते हैं — और इससे dissolved oxygen (घुलित ऑक्सीजन) की मात्रा बहुत बढ़ जाती है।
●कैसे काम करती है?
बहता हुआ पानी हमेशा स्थिर पानी से ज़्यादा ऑक्सीजन लेता है। झरनों, प्रपातों (waterfalls), और धारा के चढ़ाव-उतारों में जब पानी उछलता है, तब यह हवा से सीधे ऑक्सीजन सोख लेता है।
● कब से होती है?
गंगोत्री से ही ऑक्सीजन भरने की यह प्रक्रिया शुरू हो जाती है और आगे ऋषिकेश, हरिद्वार तक प्रवाह इतना तेज होता है कि ऑक्सीजन की मात्रा सामान्य नदियों से कई गुना अधिक रहती है।
3. गंगाजल में पाए जाने वाले भारी धातु आयन (Trace Minerals)
गंगाजल में प्राकृतिक रूप से कुछ trace elements और heavy metal ions (जैसे सिल्वर, कॉपर) की सूक्ष्म मात्राएँ पाई जाती हैं, जो अपने आप में एंटी-बैक्टीरियल गुण रखते हैं।
• कॉपर आयन – जल को शुद्ध करने में सहायक
• सिल्वर आयन – बैक्टीरिया और फफूंद को नष्ट करने की क्षमता
ये तत्व पानी को प्राकृतिक रूप से संरक्षित रखने में मदद करते हैं।
ट्रेस मिनरल्स (Trace Minerals) गंगाजल में कहाँ से आते हैं?
● कहां से आते हैं?
गंगा का पानी जब हिमालय की चट्टानों, पत्थरों और मिट्टी से होकर नीचे आता है, तो उसमें प्राकृतिक रूप से बहुत सारे सूक्ष्म खनिज तत्व (जैसे सिल्वर, कॉपर, मैग्नीशियम, जिंक आदि) घुल जाते हैं।
● कैसे घुलते हैं?
• यह जल जब ग्लेशियर से निकलता है, तो वह अपने रास्ते की चट्टानों को घिसता है और उनमें से खनिज तत्व घोल कर अपने साथ बहा ले जाता है।
• जैसे ही यह पानी नीचे के इलाकों से गुजरता है, तो वह मिट्टी और खनिजों से और अधिक ट्रेस एलिमेंट्स लेता जाता है।
● कब से होते हैं?
गंगा के हर चरण में – खासकर उत्तरकाशी, टिहरी, ऋषिकेश, हरिद्वार आदि पर्वतीय क्षेत्रों में – ये खनिज तत्व अधिक मात्रा में जल में घुलते हैं।
4. गंगा जल का निम्न तापमान
गंगाजल का स्रोत गंगोत्री ग्लेशियर है, जो हजारों वर्षों से बर्फ के रूप में जमा शुद्ध जल है।
जब यह हिम पिघलता है, तो इससे निकलने वाला जल sterile यानी कीटाणु-मुक्त होता है। इसमें न तो मानव अपशिष्ट होते हैं और न ही जैविक अशुद्धियाँ। यह जल अत्यंत ठंडा, खनिज-युक्त और बैक्टीरिया के लिए प्रतिकूल होता है। इन कारणों से भी गंगा जल आसपास के वातावरण से काफी हद तक खुद को दूषित होने से बचा लेता है |
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
इस जल का तापमान कम होने के कारण भी रोगाणुओं की वृद्धि सीमित रहती है।
5. माइक्रोफ्लोरा और माइक्रोफॉना – जैविक संतुलन
गंगाजल इसलिए नहीं सड़ता क्योंकि उसमें एक अदृश्य “सूक्ष्म जीवों की टीम” होती है, जो बैक्टीरिया को नियंत्रित करती है, ऑक्सीजन बनाए रखती है, और हर जैविक क्रिया को संतुलन में रखती है।
ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे जंगल में शेर, हिरण और घास के बीच एक संतुलन बना रहता है।
माइक्रोफ्लोरा और माइक्रोफॉना क्या होते हैं?
• Microflora (सूक्ष्म पादप):
ये जल में मौजूद सूक्ष्म पौधे जैसे algae, cyanobacteria, diatoms होते हैं। ये प्रकाश से ऊर्जा बनाते हैं और ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
• Microfauna (सूक्ष्म जन्तु):
ये छोटे जीव-जंतु होते हैं जैसे protozoa, rotifers, और microscopic worms जो जल में मौजूद बैक्टीरिया, मृत कोशिकाएं, और दूसरे सूक्ष्म जीवों को खाते हैं।
6. अम्लता स्तर (PH) का कम (slightly alkaline) होना
गंगाजल का pH आमतौर पर 7.2 से 8.0 के बीच होता है, जो इसे थोड़ा क्षारीय (alkaline) बनाता है।
यह pH स्तर कई प्रकार के रोगजनक बैक्टीरिया के लिए अनुकूल नहीं होता।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:
• ज़्यादातर बैक्टीरिया तटस्थ या अम्लीय वातावरण में पनपते हैं। क्षारीयता बैक्टीरिया की कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को बाधित करती है।
• इसलिए गंगाजल में बैक्टीरिया टिक नहीं पाते।
चित्र : एक पुजारी द्वारा सायकालीन गंगा आरती करने का एक सांकेतिक दृश्य
गंगा की शुद्धता और पवित्रता में मानवीय हस्तक्षेप से प्रभाव व हमारा दायित्व :
गंगा में मानवीय गतिविधियाँ – तीर्थयात्राओं और टूरिज़्म के कारण कूड़ा-कचरा, प्लास्टिक और मल-अपशिष्ट की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ रही है, फैक्ट्रीज या आसपास के उद्योगों का अवशिष्ट गंगा में छोड़ा जा रहा है, जिससे इसकी गुणवक्ता व शुद्धता पर खतरा मंडराने लगा है। आइये हम सब जागृत लोग औरों को भी सजक करें और मिल कर अपनी इस सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व वैज्ञानिक धरोहर को बचाने में सहयोगी बनें – स्वयं जागें और को भी जागरूक करें | गंगा की महिमा का स्वयं लाभ लें व और को भी प्रेरित करें |
